आयुष झोंक रहा है छात्रों, शिक्षकों, विश्वविद्यालयों की आंखों में धूल

लेखक : उन्मेष गुजराथी

14 Feb, 2023

सेमिनार में भाग लेने और भुगतान करने के लिए छात्रों और शिक्षकों को किया जा रहा है मजबूर

उन्मेष गुजराथी
स्प्राउट्स एक्सक्लूसिव

आयुष विभाग (AYUSH department) 16 व 17 फरवरी को डी वाई पाटिल विश्वविद्यालय (D.Y. Patil University) में राष्ट्रीय सेमिनार (National Seminar) का आयोजनकर विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, छात्रों की आंखों में धूल झोंक रहा है. पिछले सेमिनार से आए धन को पचाने के लिए विवादास्पद महेश कुमार हरित (Mahesh Kumar Harit) को आयुर्वेद के विवादास्पद पूर्व निदेशक डॉ. कुलदीप कोहली (Dr. Kuldip Kohli) के मार्गदर्शन में नये सेमिनार का लक्ष्य दिया गया है.

जैसा कि पिछले कार्यक्रम का हिसाब नहीं दिया गया है, अब एक बार फिर राज्य सरकार के आयुष विभाग (AYUSH Department), मुंबई क्षेत्र के सभी आयुर्वेदिक महाविद्यालय (Ayurvedic Colleges), आरोग्य भारती (Arogya Bharti) की ओर से 16 और 17 फरवरी को “जीवनशैली विकार” (Lifestyle Disorders) पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया है और इस अवसर पर फिर लाखों रूपये नकद जमा किए जा रहे हैं.

चूंकि छात्रों और शिक्षकों को भुगतान पर इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है, इसलिए सेमिनार का आयोजन आयुर्वेद विभाग के विवादास्पद पूर्व निदेशक डॉ. कुलदीप कोहली और डीवाई पाटिल आयुर्वेदिक कॉलेज के विवादास्पद डीन महेश कुमार हरित को सौंपा गया है. शिक्षण स्टाफ ने अपनी तीखी नाराजगी व्यक्त की है. डॉ. कोहली के रिटायर होने के बाद भी उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए लाखों रुपये जुटाने की कोशिश की गई. हालांकि, जैसा कि छात्रों और शिक्षकों ने शिकायत की और जनता दल ने आवाज उठाई, तो कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा था.

अब जबकि डॉ. कोहली सेवानिवृत्त हो चुके हैं. उनका प्रशासन से कोई लेना-देना नहीं है. इसलिए उन्हें सेमिनार की जिम्मेदारी सौंपने का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन फर्जी प्रमाणपत्रों के आरोप में चर्चा में रहे महेश कुमार हरित को बचाने और उनकी और डॉ. कोहली की छवि को चमकाने के लिए इस कार्यक्रम का इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार के आयुर्वेद विभाग की व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है.

इससे पहले, 16 और 17 अगस्त, 2017 को डीवाई पाटिल कॉलेज में तत्कालीन आयुर्वेद निदेशक डॉ. कुलदीप कोहली के मार्गदर्शन में “मधुमेह” (Diabetes) पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया था. सभी कॉलेजों को फंड जुटाने के लिए प्रतिनिधि पंजीकरण का लक्ष्य दिया गया था. शिक्षकों से रु. 2,500 शुल्क और विलंब शुल्क सहित रु. 3000 और छात्रों से रु. 2,000 और विलंब शुल्क सहित रु. 2,500 वसूले गए. इसके अलावा सेमिनार स्थल पर विभिन्न कंपनियों ने अपने-अपने स्टॉल भी लगाए थे. इससे लाखों रुपए वसूले गए.

यह पैसा ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से जुटाया गया था. ऑनलाइन पेमेंट के लिए www.ayurvedseminarmaha.info नाम से वेबसाइट बनाई गई थी, जो अब बंद हो गई नजर आ रही है. दिलचस्प बात यह है कि मुद्रित सूचना पत्र पर इस खाते के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया था. इसके बाद भी जब से डॉ. कोहली सेवानिवृत्त हुए हैं, इस खाते के संग्रह और व्यय का विवरण जारी नहीं किया गया है. ऐसे में इस खाते में कितना पैसा बचा है यह कोई नहीं जानता.

इस खाते के विवरण को दबाने और किसी पर कोई बकाया न दिखाने के लिए इस खाते का इस्तेमाल मौजूदा सेमिनार के लिए राशि जमा करने के लिए किया जा रहा है.

दिलचस्प बात यह है कि सूचना पत्र पर बैंक खाते का विवरण दिया गया है, लेकिन इसमें व्हाट्सएप के माध्यम से नकद भुगतान और यूपीआई के माध्यम से संदेश भेजने के लिए कहा जा रहा है. हैरानी की बात यह है कि इस बार सेमिनार का नाम “आयुर्वेदिक विजडम सॉल्यूशन फॉर लाइफस्टाइल डिसऑर्डर” (Ayurvedic Wisdom Solution for Lifestyle Disorder) है, लेकिन बैंक खाते पर नाम “आयुष डायबिटीज सेमिनार” (Ayush Diabetes Seminar) पुराना ही दिया गया है. इसीलिए पुराने खाते का उपयोग खाते के पिछले विवरण को छिपाने के लिए किया जा रहा है और इसीलिए खाते के पिछले विवरण को पहले घोषित करने की मांग की जा रही है.

महेश कुमार हरित की जांच एनसीआईएसएम (NCISM), एमसीआईएम (MCIM), आयुष विभाग (AYUSH Department) के पास लंबित है तो उन्हें इस राष्ट्रीय सेमिनार के सचिव का पद क्यों दिया गया. चूंकि इस सेमिनार में इन विभागों के अहम अधिकारी मौजूद रहेंगे, इसलिए यह भी सवाल किया जा रहा है कि क्या उनसे हरित की निष्पक्ष जांच की उम्मीद की जा सकती है.

डीवाई पाटिल विश्वविद्यालय प्रबंधन और आम जनता की नजरों में महेश कुमार हरित की छवि चमकाने के लिए और उन्हें एक तरह से क्लीन चिट देने के लिए, उन्हें इस सेमिनार के सचिव का पद दिया गया है. उनकी और साथ ही डॉ. कोहली की विवादास्पद पृष्ठभूमि को देखते हुए शिक्षकों और छात्रों की ओर से मांग की जा रही है कि उन्हें इस सरकारी सेमिनार के आयोजन से दूर रखा जाए और 2016 के सेमिनार के लेखा-जोखा का विवरण जारी किया जाए.

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